Tuesday, June 17, 2008

Divine.......

वक्त तेरी सलवटों में लिपटी , यादें कुछ पहचानी सी ।

आज भी दिख जाते वह मंजर, कुछ कुछ एक कहानी सी।

याद है अब तक दर्द दबा कर, तेरे होठों का मुस्काना,

भुला नही पाया इस पल भी, कुर्बानी का ताना बाना।

कहते हैं सब लोग खुदाई , रूठ चुकी इंसानों से ,

हमने तो बस तुमको देखा, पाँच दफा अजानो में ।

कुफ्र हमारा तुमको ढूंढे ,इमान दे जाए तुम्हारा साथ,

आज शाम भी दीया जला कर, करनी है तुमसे कुछ बात।

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