Thursday, June 26, 2008

Homage to the fallen tree..........

साये में सिमट गया कोई।
घोंसले टूटे , बगिया रूठी,
गुंचा सूखा, गीली माटी।
जोर चली आंधी कल शब्,
सब उजाड़ गया लगता है अब।
साये में .......
बरसों पहले एक बीज प्यार का,
माटी का ले साथ यार सा।
मौसम के रिमझिम फुहार पा,
दरख्त बना था देवदार का।
साये में .......
जमीन-दरख्त का प्यार अनूठा,
आंधी को कल रात न भाया।
हाय जाने वोह कौन सा लम्हा,
दरख्त टूट धरती पर आया ।
साये में ........
चीखी थी तब कोयल प्यारी,
गूज उठा था यह आकाश ।
पगली खिड़की के कोने से ,
दिखती अब भी है वो लाश।
साये में सिमट गया कोई.....


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