Friday, August 29, 2008

Oxymorons of existence....

कोई कुर्बत में डूबा है, कोई चाहत में उलझा है।
खुदा तेरे जादू नगर में हंगामा ये कैसा है।

कुछ बोलते बुत देखे हैं,कुछ जुबान खामोश हैं।
शजर के कोरे फूल में अब दाग हलके -हलके हैं।

माकूल सी पूर्वा हवा का, एक झोंका कह रहा।
यह कौन सा रहबर था जाने, दूर होता ही रहा।

रौशनी की स्याह गलियाँ,शब् सी है बेदाग़ रंगत।
जिंदा लाशों के शहर में मुर्दा लोगों की ये उल्फत।

बोले कभी जो धड़कन,गुजरे कभी गर उस यकीन से ।
पूछ लेना नाम उसका,रहता है वो अब हर कहीं पे।

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