Sunday, March 15, 2020

कोरोना और वैश्वीकरण 2.0

कोरोना और वैश्वीकरण 2.0 

आज इटली की गलियों में सन्नाटा है, चीन सहमी हुई हालत में अनवरत संघर्षरत है, अमेरिका स्वास्थ्य बीमा और जन स्वास्थ्य प्रणाली की आर्थिक चुनौतियों के बीच अपने लोगों को बचाने की जुगत में है, दक्षिणी कोरिया अपनी पूरी ताकत से इस महामारी से लड़ रहा है, इरान अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच उम्मीद के नए साथी ढूंढ रहा है. जी हाँ, वैश्विक महामारी कोरोना ने वैश्वीकृत 21 वी सदी के विश्व की वह दशा की है कि सभी को अपनी क्षमता, अपनी सीमा, अपनी सार्वभौमिकता के साथ इस चक्रव्यूह को पार करना है. भूमंडलीकरण के सारे प्रयोगधर्मी एक टक विश्व के देशों की भौगोलिक सीमाओं को तात्कालिक रूप से बंद होते देख रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रद्द की जा रही है, आवागमन प्रभावित है, कांफ्रेंस और सेमिनार रद्द किये जा चुके हैं, कई देशों में लोगों का मिलना जुलना प्रतिबंधित है. 

भारत में इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया है, सरकार बड़ी बड़ी तैयारियां कर रही है. हर आते जाते फोन की कॉलर ट्यून जन जन को इस विभीषिका के बारे में जागृत कर रही है. कई राज्यों में स्कूल, कॉलेज, सिनेमा घर बंद किये जा चुके हैं. एक ऐसे अज्ञात से संघर्ष की तैयारी जोरों पर है, जिसका निश्चित समाधान अभी उपलब्ध नहीं है. बड़ी बड़ी कंपनियां अपने कर्मियों को घर से काम करने का विकल्प दे रही हैं. कई व्यवसाय प्रभावित हुए हैं, ख़ास कर परिवहन और पर्यटन. सोशल मीडिया की फैलती आग ने मांसाहार आधारित भोजन उद्योग को भी अनावश्यक इसके प्रभाव की जद में ला दिया है. वैज्ञानिक और स्वास्थ्य सेवा के लोग अनवरत सुरक्षा और समाधान की व्यवस्था में लगे हैं. शासन एवं प्रशासन अपनी प्रबंधन क्षमता और रणनीति के उच्चतम स्तर पर काम कर रहे हैं. भारत सरकार ने विभिन्न अन्य देशों में फंसे भारतीय नागरिकों को भी सकुशल भारत ले आने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. 

शेयर बाज़ार भी इस वैश्विक हलचल से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. विश्व के अनेक बाजारों के सूचकांकों में विगत दिनों में भारी गिरावट देखी गयी. निवेशकों में एक चिंता और घबराहट दिखी. हालांकि बाजारों के गिरने के क्रम में तात्कालिक ठहराव भी दिखा, लेकिन कमोबेश विश्व भर में निवेशकों के विश्वास में चोट पहुंची है. विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक एवं निर्यातक राष्ट्र चीन ठिठका हुआ है. उसकी अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुची है. दृश्य अदृश्य संबंधों से जुड़े विश्व में चीन से शुरू हुई इस विभीषिका से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार सहमा हुआ है. मालवाहक जहाज अपने पत्तन में खड़े हैं. 

कोरोना के वैश्विक फैलाव के पीछे कहीं न कहीं भूमंडलीकरण का वह प्रयोग है जो विगत 30 वर्षों से सामाजिक - आर्थिक एवं भू राजनैतिक विकास का केंद्र रहा है. आज अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, पर्यटन, विदेशज श्रमिकों का उपयोग सहज एवं आवश्यक हो चुका है. स्थानीय मांग की हर खाई को भरने के लिए विश्व के व्यापारिक पूर्तिकर्ता तैयार है. कुछ भी असंभव नहीं रहा, इच्छाशक्ति और पूँजी ने अंतर्राष्ट्रीय समन्वय के सहयोग से अनेक शहर बसाए, अनेक नए उद्यम को दिशा दी. बड़ी पूँजी और सस्ते श्रम की खोज ने नित नए व्यापारिक सम्बन्ध सृजित किये. दुनिया "वैश्विक गाँव" बन गयी. चीन और भारत जैसे श्रम संपन्न राष्ट्र इस गाँव में महत्वपूर्ण बने. चीन के कारखानों ने जो धुंआ उगला, श्रमिकों ने जो योग्यता दिखाई, उद्यमियों ने जो हिम्मत दिखाई, उस उत्पाद को अमेज़न और अली बाबा ने दुनिया के घर घर में पंहुचा दिया. गुआनझाऊ और शंघाई अंतर्राष्ट्रीय थोक बाज़ार जैसे बन गए. 

बढ़ते मांग, बढ़ते उपभोग, बढ़ते उत्पादन को सूचना प्रोद्योगिकी ने असंभव को संभव कर सकने का हौसला दिलाया. हम दुनिया के लोग जाने - अनजाने अनदिखी डोरों से जुड़ गए. व्यापार, नवाचार और प्रोद्योगिकी के तीव्र विकास का जो उपक्रम चला, उसने कई बार अपनी गति से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय नियमन को भी स्तब्ध कर दिया. पश्चिम की पूँजी और पूरब का श्रम मिल कर इस वैश्विक गाँव की नयी दशा और दिशा बना रहे थे. विश्व के इतिहास में अर्थव्यवस्थाएं विदेशी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष निवेश के चलते इतनी करीब कभी नहीं हुई थी. 

राष्ट्र अपनी सार्वभौमिकता और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में समन्वय बैठाने के लिए सतत शोध रत रहे. इसके साथ ही प्रत्येक राष्ट्र सीमा के अन्दर और बाहर के विकास, संबंधों और प्रभावों में समन्वय बिठाने को कटिबद्ध रहे. सूचना और समाचार का पैमाना भी अब स्थानीयता और देश की सीमाओं के परे पूरा विश्व हो चुका है. पूरा विश्व एक मंच बन गया, और संबंधों के रंग बिरंगे कथानक समेटे अनेकों राष्ट्र समूह उभर आये. 
एक ओर जहाँ विकास, शोध, सम्बन्ध, विनिमय, उत्पादन, निवेश, श्रम एवं तकनीक हस्तांतरण के नित नए सोपान बने. वहीँ दूसरी ओर आतंकवाद, शोषण, दोहन, दरिद्रता, भ्रम, भय का मंच भी व्यापक हो कर अंतर्राष्ट्रीय हो गया. अस्तित्व के हाशिये पर जीवन के ज्वलंत विषय अब विश्व के सुदूर कोने में होने वाली गतिविधियों से प्रभावित होने लगे. झारखण्ड के खूंटी के किसी सुदूर गाँव में रहने वाले किसान की सामाजिक - आर्थिक दशा, दिशा और उपयोगिता को अब अमेरिका या चीन की नीतिगत गतिविधियाँ प्रभावित कर सकती हैं. वैश्विक प्रभाव और दुष्प्रभाव अब सीमाओं का मोहताज न रहा. 

इसी बीच वैश्विक महामारी "कोरोना" या "कोविद 19" ने एक बार पूरे विश्व को चकित कर दिया है. इसकी उत्पत्ति का जो भी रहस्य सामने आये, परन्तु समाधान के अभाव में कोरोना का इस वैश्विक गाँव में बढ़ता संक्रमण हमें भविष्य के विश्व के बारे में सोचने को मजबूर करता है. समाज और सरकार अथक प्रयास कर रहे हैं, आशा और प्रयास की विजय होगी, कोरोना हारेगा और मानवता जीतेगी. लेकिन यह समय हमें सोचने समझने को बाध्य करता है, वैश्विक बाजारवाद के बीच वैश्विक आकस्मिकता और उसकी बेहतर तैयारी के लिए इशारा करता है. कहीं न कहीं यह सिद्ध करता है कि हम सही मायनों में वैश्विक गाँव नहीं बन पाए, सिर्फ वैश्विक बाज़ार बन कर रह गए. किसी मशहूर शायर की ग़ज़ल की एक पंक्ति याद आती हैं - "इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए". 

कैप्टेन कुमार देवाशीष

1 comment:

Unknown said...

गम्भीर चिंतन और तीक्ष्ण अभिव्यक्ति
गौरीशंकर शर्मा

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...