Friday, September 12, 2008

Bliss .....

यह रोग किसको मैं बताऊँ,
दफन आंसू कैसे दिखाऊं।
ला इलाजी पे हूँ हंसता,
हाल-ऐ-दिल कैसे बताऊँ।

एक नाम गोया क्यूँ लिया,
कुछ इश्क की तौहीन की।
एक आरजू में डूब कर ,
क्यूँ आवारगी हसीन की ।

साँस का मालिक भी कहता,
इश्क अनजानी दवा है।
रूह तक तो यह खुदा सा,
नाम में यह एक सजा है।

यह सजा आंखों की जीनत,
आशिक की है यह बंदगी।
ना दवा कोई असर की,
यह रोग सी है दिल्लगी।






3 comments:

Anonymous said...

nice

Anonymous said...

bindaaaaaaaasssssssss boliye " bliss" main kya bolna tha aapko hmare hote hue aap ye baat pucho acha nahi lagaaaaaaaa. aage aapki ichchaaaaaaaaa.

Anonymous said...

waah waah... aashiq ke dard ko sabdon mein bandha hai... baba... ilaz bhi bata dete.. paanchvi manzil.. jai ho jai ho :D

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सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...