Friday, September 8, 2023

दृष्टि

उस योगी को अब माया और जीव दोनों दिख रहे थे। किसी पात्र में पानी पर तेल की परत जैसे, पहले अधिकतर यह पात्र आंदोलित दिखता। परन्तु इस बार उसकी दृष्टि स्पष्ट थी, पात्र चाह कर भी आंदोलित नहीं हो पा रहा था। इतना स्पष्ट उसने पहली बार देखा था। ऐसा लगता था उसके ह्रदय को बीसियों तीरों ने बिंध दिया हो। फिर भी वह इस दृष्टि में आनंदित था, इस आनंद में कोई ओज नहीं था, कोई भार नहीं था, कोई प्रेरणा नहीं थी और कोई आह्लाद नहीं था। एक सपाट आनंद। तय करना कठिन था कि यह जागृति थी या सुषुप्ति। परन्तु इस स्थायी होती दृष्टि के साथ आगे की यात्रा रोचक होने वाली थी .......



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