Friday, September 8, 2023

निश्चय और नियति

निश्चिंत रहें। हमने जितना दैव अर्जित किया है, वह हमारे साथ ही रहेगा। शास्त्र कहते हैं कि कर्म किसी बछिया की तरह है जो असंख्य धेनुओं में भी अपनी माता को पहचान लेता है। तो जब तक कर्म का बंधन है, श्रेष्ठ कर्म श्रेयस्कर हैं। और जो बंधन मुक्त हैं, वह तो लीला पुरुषोत्तम के साक्षात स्वरुप हैं।

कर्म के बंधन में आनंद के मार्ग ढूंढना ही मुक्ति के सोपान हैं। निश्चय और नियति का निर्माण करता जीवन बह रहा है। जब बाधाओं को भी हम अपनेपन से सुलझाएंगे, प्रवाह सरल होता जाएगा। बढ़ते रहिये।




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