Friday, May 23, 2008

Solace....

राहतों से डर लगता है ॥
बेचैन जिगर, बेताब नजर,
प्यासी आहें ,खूंखार नजर।
तड़प-तड़प और बिफ़र बिफ़र,
घायल सांसें, बर्बाद शजर।
राहतों........
टूटी- फूटी , गीली -सीली,
एहसास मरे, खामोश ये घर।
है जला जला, कुछ बुझा बुझा,
दीवाना सा मेरा मंजर।
राहतों........
है गिरे पड़े, कुछ लुटे हुए,
कुछ पिटे हुए , मेरे अरमान।
ठहर ठहर, न फेर नजर,
कह दे तू जरा उनका फरमान।
राहतों ........
मौत मौत और jist jist ,
लड़ना -मरना ,पाना खोना।
अब बहुत हुआ ये खेल खुदा,
मैं चला ,नही रोना धोना।
राहतों..........



1 comment:

Unknown said...

chalo accha laga ki no rona dhona.bindaas jine ka.

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...