Tuesday, October 6, 2020

उत्सर्ग

अब तिमिर को लांघ सूरज आ चुका है,

लालिमा जग में, ह्रदय में बढ़ चली है। खोल बाहें, कर रहे हम स्वस्ति गायन, छाई विभा उत्सर्ग की पहली कड़ी है।



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सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...