Tuesday, October 6, 2020

तुझे ढूंढते हैं हर नज़र

तुझे ढूंढते हैं हर नज़र 

ऐ मेरे शहर ऐ मेरे शहर 


वो जो छिप गया वो सुकून था 

वो जो दिख रहा वो नसीब है।  


मेरी हसरतों की न फ़िक्र कर, 

अब सवाल उठते हैं वजूद पर। 


तू जख्म की न कोई बात कर, 

कोई कील ला ये सलीब है। 


मेरा मैं बिखर के सब हुआ ,

क्या अजब हुआ, क्या गजब हुआ। 


तुझे ढूंढते हैं हर नज़र 

ऐ मेरे शहर ऐ मेरे शहर 





No comments:

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...