Tuesday, August 26, 2008

Perceptions....

लोगों से सुन रहा हूँ, ख़ुद का सबब नही उन्हें।
अब ख़ुद से पूछता हूँ, लोगों का क्या करें।

हैरत सी यह कहानी, दिलचस्प दास्तान हैं।
खामोश सी जुबानी , हरक़त का इम्तेहान हैं।

क्यूँ सोचते हैं लोग, ख़ुद को बड़ा हसीन ।
मिटटी से ही तो बनती है,कोई भी नाजनीन।

गैरत गिरा के आँख का, आइना क्यूँ तकते हो।
फितरतें अपनी सजा कर, क्यूँ दूसरों पे हँसते हो।

वोह मसीहा ना सही, कातिल नही वो देव का।
कुफ्र उसको गर हुआ भी,ईमान है उसका देवता।


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