Thursday, August 28, 2008

Nadir n Zenith......

नींदिया कबसे मुझसे रूठी,
अंखियों की अब प्यास है झूठी।
सावन नही न जेठ है इनमे,
क्यूँ तेरी मेरी उल्फत टूटी।

दिन गिनते , दिन कितने काटे,
बारिस बीती, सर्द थी रातें।
और सर्द सा था मेरा मन् ,
बर्फ बनी थी मेरी आहें ।

अल्लाह, दुहाई किसको बोलूँ,
किसको अपना मैं दिखलाऊं।
कहीं नही जो गा सकता मैं,
गीत तुम्हे वोह आज सुनाऊं।

कुछ कुछ एक सवेरा देखा,
तूफ़ान देखा, साहिल भी देखा।
दूर कहीं तुम तक ले जाती,
हाथों की यह जीवन रेखा।

1 comment:

Anonymous said...

Whom can I ask?

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