Tuesday, August 19, 2008

To hypocrisy of lords of naive masses....

कुछ लोग भूखे हैं।
बीमार जिंदगी, दर्द दवा है ,
इस बीमारी से पार कहाँ है।
दहशत,वहशत और लालच ने
उनसे सब कुछ छीन लिया है।

कुछ लोग भूखे हैं।
स्वांग रचा कुछ लोक तंत्र का,
समता के अभिनव वसंत का।
अरमानो का बस खून हुआ है,
जाने कितना लहू बहा है।

कुछ लोग भूखे हैं।
छीन रोटियाँ हाथों की अब,
प्रगति का आह्वान हुआ है।
जाने क्यूँ इस लोकतंत्र में ,
सामंतों का विहान हुआ है।

कुछ लोग भूखे है।
बाँट समाज टुकड़े टुकड़े में,
राज किए सब जाते हैं।
बेबस कर ख़ुद से ही सब को,
मुक्ति मार्ग दिखलाते हैं।

कुछ लोग भूखे हैं.

1 comment:

Anonymous said...

superb

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