Tuesday, August 5, 2008

The unintended.......

बातों की सरहद पे उनके इरादे,
बेखबर से हमसे हुई वारदातें।

बोली शिकन की,घुटन के अल्फाज़,
जो जाना किए हमको,हुए क्यूँ नाराज।

अब सीरत हमारी, कर रही कुछ सवाल,
क्यूँ हमसे कोई रूठे, क्यूँ होवे बेहाल।

जो चाहा कभी ना, ना ख्वाबों में सोचा,
क्यूँ वैसे खड़े हो कुछ अनजाने बवाल।

लकीरों को तकता, और ख़ुद से हूँ कहता,
हो सके तोह समझना ना वैसी कोई बात।

जाने क्यूँ समझ के भी उलझे से साज़,
मरहूम से लगते हैं अब अपने अल्फाज़।

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