Saturday, June 13, 2020

जाल

माँ ने समझाया था। बहेलिया आएगा, जाल बिछायेगा, दाने डालेगा, जाल में कभी मत फसना, वरना वह ले जायेगा, खेलेगा,खायेगा,बांधेगा,मारेगा, बाजार में बेचेगा। फिर भी, दाने -जाल -शिकारी का खेल चालू है, हर बढ़ते बेसुध कदमों के पीछे कोई शिकारी है।



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क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...