Saturday, June 13, 2020

माँ

माँ तुम्हारे अंक में जीवन फले, जीवन बढे,
सोख तेरे प्राण पोषण,सृष्टि का प्रहसन चले।
भगीरथी यह त्याग की,यह विशाखा प्रेम की,
माँ तुम्हारी यह तपस्या युग युगों को तारती।

PC- Capt Sushil


No comments:

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...