Sunday, July 6, 2008

Nostalgia.......

आतिश सी रही शब् ,
हैरत में कटी रात।
जश्न के वो जलवे ,
लगते हैं वारदात।

शोखी भी पड़ी जर्द,
लम्हे हुए कब साल।
क्या जाने किस खुदा के,
बिखरे हैं येह जमाल।

साँसों में बुझा कुछ,
सीलन भरी अब आस।
फलक का कोई रंग,
आता नही अब रास।

इश्क की वो रंजिशें,
हैं मुश्क से नासाज।
हैं जख्म में पैबस्त,
कातिल तेरे अल्फाज़।

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