Friday, July 11, 2008

The wounds...........

है घाव बहुत गहरा साकी,
वक्त किनारे बैठ रात,
शोलों की बारिस झेली है।
हो एक कतल सी वो बोली,
लहू में हमने घोली है।
है घाव बहुत.....
क्या मरहम दुनिया में होगा ,
जख्म-ऐ-जिगर तक जा पहुचे।
क्या मय होगा मयखाने में ,
जो लाश-ऐ-जिगर जिन्दा कर दे।
है घाव बहुत.....
है खुदा अगर जर्रे जर्रे में,
इस प्याले में तू उसको डाल।
एक घूँट लगा, बेकस दिल का
सब कह जाऊं उस से मैं हाल।

है घाव बहुत....
अब दफन हयातों में शैतान,
कब टूट चुका मेरा इंसान।
एक जाम बना ऐसा साकी,
पा जाऊं अब उसका फरमान।
है घाव बहुत गहरा साकी.

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