मेरी गुर्बतों के अब्र,
राशिद तेरे अल्फाज़।
तरन्नुम की कशिश,
सजते हुए से साज़।
दीगर वोह माहताब,
चश्म का वोह आब।
कुछ दीवाने से किस्से,
कुछ चाहत के आदाब।
हरजाई रही जो रात,
कह गई जिगर की बात।
साँसों के रस्ते हौले से,
कुछ सरगोशी की सौगात।
गुलशन का मौसम बदला,
उगते से दीखते अब पात।
जिगर के रौशन टुकडो में
भी बनती सी अब कोई बात।
होठों का शजर वोह देखो,
फ़िर से हो रहा हरा है।
मुस्कान का रमल भी देखो,
फ़िर चल सा पडा है।
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
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क्या रहता, क्या खो जाता है?
सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...
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Bol Bam - A journey of faith and surrender. (Sultanganj to Deoghar)- Shravan , 2011 It was raining heavily in Kolkata. The streets were ...
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सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...
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चलो यह बस्ते, यह बोझ फेंकते हैं, दौड़ कर क्षितिज से कुछ पूछते हैं। आशा की तूलिका में रंग नए लपेटे, जीवन सूर्य को सुनहला कर देते हैं।
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