Tuesday, July 8, 2008

For some unknown ..........

झुक गयी सी नज़र, कह गए कुछ अरमान,
सिल गए वो होठ, चल पडा एक नगमा।

खामोश तमन्नाएं, उल्फत की ही बोली,
कुछ संगीन हो फिजा, या चाहत की हो होली।

चिरागों सी रोशन , तेरी दो वो आँखें,
सागर से गहरे , लबों के वो प्याले।

जिस्म से दिल तक, तपिश एक कशिश की है,
क्या तुमको बयान हो, खलिश कुछ बची सी है।

है नूर-ऐ-खुदाई, कुछ तुझ में समाया,
आ कर जा फनाह, बन जा मेरा सरमाया।

2 comments:

Anonymous said...

हमेशा की तरह उदास

Anonymous said...

as usual classic and very devlike.

keep it up
but, i thought it was for someone u know.

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...