Tuesday, July 7, 2020

जाल

बीते हुए तूफ़ान की कुछ याद ले कर,
फिर समंदर में चला हूँ जाल ले कर।
फिर निकालूँगा मेरे बच्चों के निवाले,
मछलियां छोटी बड़ी सब दाम वाले।

मछलियों से दोस्ती मैं कर न पाया,
मछलियों से मैंने अपना घर चलाया।
जाल ही मैंने है जीवन भर बिछाया,
यही मेरा सत्य, इतनी ही मेरी माया।

PC- Capt Sushil Kumar


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