Saturday, July 15, 2023

जेठ की दोपहरी

जेठ की दोपहरी में,

मैं ढूंढ रहा था समय के पदचिन्ह।
आज थके पाँव में जूते हैं,
सर पर टोपी और सजीली छतरी भी।
एक दिन वह भी थे,
खाली पाँव, भरा पूरा मन।
खाने, खेलने को जंगल
और सो जाने को पेड़ों की छाँव।



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