मानव निर्मित व्यवस्थाओं के अंदर स्थापित नियमों के साथ एक मानव वन भी होता है। शीर्षस्थ व्यक्ति भी यदि लम्बे समय तक केवल नियमों के बल पर चले तो उसे व्यवस्था के अन्य घटक पसंद नहीं करते। व्यवस्था के प्राणियों को नियमों के जाल में भी अपने रूचि के वैचारिक और भौतिक भोजन चाहिए। थोड़े समय का अवकास वह सह सकते हैं, परन्तु लम्बे समय तक बिलकुल नहीं। नियमों से चलने वाले व्यक्ति को यदि सफलता पूर्वक अपने काम करने है तो उसमें विलक्षण चातुर्य चाहिए।
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
Saturday, July 15, 2023
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क्या रहता, क्या खो जाता है?
सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...
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Bol Bam - A journey of faith and surrender. (Sultanganj to Deoghar)- Shravan , 2011 It was raining heavily in Kolkata. The streets were ...
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सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...
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चलो यह बस्ते, यह बोझ फेंकते हैं, दौड़ कर क्षितिज से कुछ पूछते हैं। आशा की तूलिका में रंग नए लपेटे, जीवन सूर्य को सुनहला कर देते हैं।
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