Saturday, July 15, 2023

संवेदना के बीज

बचपन और किशोरावस्था में मिले अनुभव मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। अनुकूलन के बीज बोने का यह उचित समय होता है। हाँ, उर्वर मष्तिष्क उस बीज को कब तक पोषित करता है, अंततः वह व्यक्ति विशेष के चरित्र पर निर्भर करता है। फिर भी जो चिरंतनता के कृषक हैं वह तो अपना काम करेंगे।

बच्चों को पढ़ाते समय, प्राथमिक के शिक्षक "सुबोपलि" की पद्धति अपनाते हैं। अर्थात सुनो, बोलो, पढ़ो, लिखो। किशोरों के साथ सोच, शब्द और प्रयोग, मनसा-वाचा-कर्मणा उस विचार बीज का रोपण कर देते हैं। प्रयोग, उस विचार बीज का जीवन के साथ निषेचन हैं।
और जब ऐसे प्रयोगों के मूल में समानुभूति हो, संवेदना हो, सत्य हो तो ऐसे प्रयोग मील का पत्थर बन जाते हैं। आज ऐसे ही एक प्रयोग के शुभारम्भ का साक्षी बनने का अवसर मिला।
क्या संवेदना के यह बीज, कल के वृक्ष बनेंगे!



No comments:

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...