Saturday, July 15, 2023

पारिजात

पारिजात ! तुम इतने सरल क्यों ? निशीथ में जब समस्त चराचर विश्रांति में डूबा रहता है, तुम उस समय खिलते हो। चन्द्रिका की शीतलता का अवलेह लिए नीरव अन्धकार में अपना सारा सुवास लुटा देते हो। तुम प्रतीक्षा भी नहीं करते कि तुम्हे किसी आराध्य के समर्पण में जाता अर्चक तोड़ सके। इतनी सरलता, इतना सौंदर्य, ऐसा सुवास और फिर भी ऐसा समर्पण। जहां से सृजन के तत्व मिले उसी धरती माता के आलिंगन हेतु तुम बिछ जाते हो, उस से भी पहले जब युग तुम्हे देखे, तुम्हारे पल्लवन के गीत गाये।

पारिजात होना कदाचित यही है।



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