Saturday, July 15, 2023

आनंद

संसार में भी रहना है और ऊंचा वाला आनंद भी चाहिए। तो बंधु आनंद की खोज में जैसे जैसे अपने अंदर जाओगे वैसे वैसे तुम्हें सामाजिक जीवंतता के लिए अभिनय सीखना होगा। अंततः यह संसार एक प्रहसन ही तो है। आत्मा और अस्तित्व का, ध्यान रहे काल की यवनिका आत्मा और अस्तित्व के प्रत्येक परिहास को देखेगी। फिर भी धीरे धीरे एक दिन सब एक हो जाएगा। जो चलता है उसे चलने दो, यात्रा ही तो है।




No comments:

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...